पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/३६३

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मनुस्मृति मापानुवाद T दाम भंट) उपायों से न माने तो दण्ड से ही बल करके क्रम में वश मे लावे ॥१०॥ सामादीनामुपायानां चतुर्णामपि पण्डिताः । सामदएडी प्रणमन्ति नित्यं राष्ट्राभिवृद्धये ॥१०॥ यथाद्धरति निदाता कहं धान्यं च रक्षति । तथा रक्षेन्नृपा राष्ट्र'हन्याच परिपन्थिनः ॥११०॥ पण्डित लोग सामादि चार उपायों में सदा राज्य की धृद्धि के लिये साम और दाड की प्रशंमा करते हैं ।।१०९॥ जैसे येती मलाने वाला धान्यों की रक्षा करता है और तृणको उग्वेड़ डालत है वैसे ही राजा राष्ट्र की रक्षा और विरुद्ध चलने वालों का नाश करे ॥११॥ माहाद्राजा स्वा यः कर्पयत्यनवेक्षया । सोचिगद्भश्यनेराज्याज्जीविताच मवान्धवः ॥११॥ शोकाणाप्राणाः चीयन्ते प्राणिनां यथा । तथा राजामपि प्राणा: चीयन्ते राष्ट्रकर्पणात् ।।११२।। जो राजा अज्ञान में विना विचारे अपने राज्य को दुःख देना है वह शाम होगव्य तथा जीवन और वान्धवो मे भ्रष्ट हो जाता है ।।११।। जैसे शरीर के शोपण में प्राणियों के प्राण क्षीण होते. है वैसे राजाप्रोकभी प्राण पद की पीड़ा बनने क्षीण होते हैं।११२॥ राष्टस्य संग्रहे नित्यं दिवानमिदमाचरेत् । सुमंगृहीतराष्ट्रो हि पार्थिवः सुखमेधते ॥१३॥ योस्त्रयाणां पञ्चाना मध्य गुल्समायोष्ठतम् ।