मनुस्मृति भाषानुवाइ - दशी मुलंतुसुजीत विशी पञ्चकुलानि च । ग्रामंग्रामशताध्यक्षः सहस्राधिपति: पुरम् ॥११६॥ तेषां ग्राम्याणि कार्याणि पृथक्कार्याणिचैत्रहि । राज्ञोऽन्यः सचिवः स्निग्धस्तानिपश्येदतन्द्रितः।१२०/- (क बैल का एक मध्यम हल ऐसे दो हलो से जितनी पृथिवीं जोती जाय उस का 'कुल' कहते है, दश ग्राम वाला एक 'कुल' का भोग प्रहणकरे और बीस गांव वाला पांच फुलका और १०० ग्राम वाला एक मध्यम प्राम तथा हजार गांव वाला एक मध्यम नगर का भोग ग्रहण कर (अर्थात् यह २ उन २ की जीविका हो)।११९१ उन के ग्रामसम्बन्धी तथा अन्य कामों को एक प्रीति वाला राजा का ( प्रतिनिधि) मन्त्री बालस्परहित होकर देखे ॥१२॥ नगरे नगरे चैकं कुर्यात्सर्वार्थचिन्तकम् । उच्चैः स्थानं घोररूपनक्षत्राणामिवग्रहम् ॥१२१॥ स ताननुपरिक्रामेत्सनिव सदा स्वयम् । तेषां धुचं परिणयेत्सम्यग्राष्ट्रषु तच्चरैः ॥१२२॥ प्रति नगर में एक एक बड़े कुल का प्रधान, सेना आदि से भय का दे सकने वाला और तारो मे (शुक्रादि) ग्रह सा तेजस्वी कार्य का द्रष्टा नगराधिपति नियत करे ॥१२॥ वह नगराधिपति सर्वदा आप उन सब प्रामाधिपतियो के ऊपर दौरा करे और राष्ट्र में उन के समाचारों को उस विषय में नियुक्त दूतो से जाने ।।१२।। राज्ञो हि रक्षाधिकृताः परस्त्रादायिनः शताः । भृत्यामपन्ति प्रायेणतेभ्योरक्षेदिमाः प्रजाः ॥१३॥