पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/४१

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३८ मनुस्मृति भाषानुवाद मनुके आशय भी हैं। वह श्लाक ग्रह है. - स्वयं मुवे नमस्कृत्य ब्रह्मणेऽमिततेजसे । । मनप्रणीतान्विविधान्धर्मान्वच्यामि शाश्वतान्॥१॥ अर्थान्-मैं (सम्पादक) अनन्त तेजम्बी स्वयम्भू ब्रह्माको नमस्कार करके मनुप्रोक्त सनातन विविध धर्मों का चयन करूंगा ।। अध्याय १. श्लोक २ में "अन्तरप्रभवाणाम के स्थान में ३ पुस्तकों में "सङ्करप्रभवाणाम् पाठ देखा जाता है। अध्याय १ श्लोक ७ में सर्वजनारायण टीकाकार "प्रतिन्द्रि योग्राह्य " मानते हैं और इसी श्लोक में ८ पुस्तका में 'सम्व- मएप पाठ देग्या जाता है ।। १ । ८ में कई पुस्तकांका पाठ अभि- ध्याय-अभिध्यायन् । वीजम-वीयम । असजत-अक्षिपत् है ॥१॥ ९ में दो पुस्तकों में 'अयनं तम्य ता पूर्व पाठ है । 1 १० के आगे नारायणपरोव्यक्तादण्डमव्यक्तसमवम् । अण्डस्यान्तस्त्विमे लेाका: सप्तडीपात्र मंदिनी ।। यह श्लोक दो पुस्तकों के मूल में और एक की टीका में देन्त्रा जाता है और एक पुस्तक में उक्त श्लोक के स्थान में निम्नलिखित प्रतिम श्लोक पाया जाता है. सहस्रशीपोपुरुषो रुक्मनाहस्थती.न्द्रयः । ब्रह्मा नारायणाख्यस्तु सुप्वाप सलिले तदा ॥ एक पुस्तक मे १।११ मे नित्यम-लाक देखा जाता है ॥१॥ १३ में ताभ्यां स शकलाभ्याम्-ताभ्यां च शकलाभ्यां ताभ्यां मुण्ड- कपालाभ्या भी देखे जाते हैं। तथा स्थान च शाश्वत स्थानम- कल्पयत् भी है । तथा इसके आगे निम्नस्थ डेढ़ श्लोक ३ पुस्तको में अधिक है। . ।