पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/४३१

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मनुस्मृति भापानुपाह योगाधमनविक्रीतं योगदानप्रतिग्रहम् । पत्र वाप्युपछि पश्येत्तत्सर्वं विनिवर्तयेत् ।।१६५॥ ग्रहीता यदि नष्टः स्यात्कुटुम्बार्थे कृता व्ययः । दातव्यं बान्धवैस्तत्स्यात्प्रतिभक्तरपि स्वतः ॥१६६॥ बल से किये हुवे वन्धक (गिरवी) विक्रय दान, प्रतिग्रह और निक्षेपन्धरोहर भी लौटा देवे ।।१६५॥ कुटुम्ब के लिये ऋण लेकर व्यय करने वाला यदि मरजावे नो उसके वान्धव विभाग किये हुवे कान विभाग कियेही अपनेधनसे उसके बदले ऋणदेवे ॥१६६। कुटम्बार्थे ध्यधीनापि व्यवहारं यमाचरेत् । स्वदेशे पा विदेशेवा तं ज्यायामविचालयेत् ॥१६७।। बलाचं वलामुक्तं चलायचापि लेखितम् । सर्वान्वलकृतानर्थानकवान्मनुरब्रवीत् ॥१६॥ जो कोई अधीन (पुत्रादि) भी कुटुम्बके लिये स्वदेश वा विदेश में कुछ व्यवहार लेन देन करले तो उसका बड़ा (अधिष्ठाता) उसे विचलित न करे (कबूल ही करे) ॥१६७|| बलात्कारसे दिया, भोग किया और वलात्कार से जो कुछ लिखाया तथा बलात्कारसे कराये सब काम नहीं किये के समान (मुम) मनु ने कहे हैं ॥१६८|| त्रया परर्थे क्लिश्यन्तिसाक्षिण प्रतिभूः कुलम् । चत्वारस्तूपचीयन्ते विप्रायोपणिक्नुपः ॥१६६।। अनादेयं नाददीतपरिक्षीणोऽपिपार्थिवः । नचादेयं समृद्धौपि सूक्ष्ममध्यर्थमुत्सजेत् ॥१७०॥