पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/४७२

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अष्टमाऽध्याय परस्परस्यानुमते सर्व संग्रहणं स्मतम् ॥३५८॥ माला चन्दनादि का भेजना, परिहाम, आलिङ्गनादि करना. वस्त्र आभूषण का स्पर्श करना आसन तथा शव्या पर साथ रहना इन सब कामा को भी परस्त्री संग्रहण के समान कहा है ।।३५५|| जो परस्त्री को मुह्य स्थान मे स्पर्श करे और जो परम्बी से छया हुवा आपस की प्रसन्नना मे सहन करे। यह सब पर स्त्री संग्रहण (३५८ से आगे १ श्लोक २ पुस्तकामे अधिक पाया जाता है कामाभिपातिनी या तु नरं स्वयमुपत्रजेत् । राजा दास्ये नियाज्या सा कृत्वा तदोपयोपणम् ।। जो स्त्री काम के वश म्वयं परपुरुप के समीप जावे तो राजा उस के दोष की मनादी = डिंडमा पिटया कर दासियों में नौकर रक्खे ॥३५८॥ 'अब्राह्मणः संग्रहणे प्राणान्त दण्डमहति । चतुर्णामपि वर्णानां द्वारा रक्ष्यतमा. सदा ॥३५९।। भिक्षुका बन्दिनश्चैत्र दीक्षिताः कारवस्तथा । संभाषणं सह स्त्रीभिः कुर्यु प्रतिवारिताः ॥३६०॥ "ब्राह्मण को छोड़ कर अन्य जो कोई परात्री संग्रहण करे वह प्राणान्त दण्डयोग्य है, क्यों कि चारो वर्षों की स्त्री सर्वदा बहुत करके रक्षा के योग्य है (यह ३२० के विरुद्ध है) ॥३५॥" भिजुक बन्दी दीक्षित और रसाई करने वाले परस्त्री के साथ निवारण न करने पर सम्मापण कर सकते हैं ।।३६० न सम्माषा परस्त्रीभिः प्रतिपिद्धः समाचरेत् ।