पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/५१५

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मनुस्मृतिभाषानुवाद है) यदि ज्येष्ठ पुत्र ज्येष्ठा में उत्पन्न हो तो एक बैल के साथ पन्द्रह गाय ग्रहण करे उसके अनन्तर अपनी माता की छोदाई के हिसाय से शेष भाग बांट लेवें यह निर्णय है ।।१२४|| "सहशस्त्रीपु जातानां पुत्राणामविशेषतः । नमातृतोज्यैष्ठयमस्ति जन्मताव्यैष्ठवमुच्यते ॥१२५।। "समस्त समान जाति की स्त्रियों में उत्पन्न हुवे पुत्रो को माता की व्येष्ठता से ज्येष्ठता नहीं, किन्तु अन्मसे ज्येष्ठता कहाती है ।। (१२१ से १२५ तक श्लोक अविहित शास्त्र विरुद्ध अनेक तथा असवर्णा से विवाहो के समर्थक और ३॥ १५-१६ के विरुद्ध होने से त्याज्य है) ॥१२५ ॥ जन्मज्येष्ठयेन चाधनं सुब्रमण्यास्वपि स्मृतम् । यमयोश्चैव गर्नेषु जन्मताज्येष्ठता स्मृता ॥१२६।। मुभमण्याख्य मन्त्र ("सुब्रह्मण्यो ३ इन्द्र आगच्छ०')इत्यादि ज्योतिष्टोम में इन को बुलाने में पढ़ते हैं उस मे ज्येष्ठ पुत्र के नाम से कहते हैं (कि अमुक का पिता यज्ञ करता है) सो वहा भी और जोड़िया दो पुत्रो में से गर्मों में प्रथम जन्मने वाले को ज्येष्ठता कही है।।१२६॥ अपुत्रोनेन विधिना सुतो कुर्वीत पुत्रिकाम् । पदपत्यं मवेदस्यां तन्मम स्यात्स्वधाकरम् ॥१२७॥ विना पुत्र वाला इस विधि से कन्या को "पुत्रिका" करे कि विवाह के समय मे (जामाता से) कहे कि जो पुत्र इसके होगा वह मेरा जलादि दान करने वाला है। (ऐसी प्रतिज्ञा करके विवाह