पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/५१४

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नवमाऽध्याय 'समस्तत्र विभाग: स्यादिति धर्माव्यवस्थितः ॥१२०॥ वकरी भेड़ तथा घोड़ाआदि एक खुर वाले पशुका विषमसंख्या होने पर कभी भाग न करे किन्तु वह ज्येष्ठ पुत्र का ही है ।११९॥ यदि कनिष्ठ माई ज्येष्ठ की भार्या मे (नियोग विधि से) पुत्र उत्पन्न करे तो वहां सम विभाग होना चाहिये। ऐसी धर्म की व्यवस्था है ॥१२०, उपसर्जनं प्रधानस्य धर्मता नोपपद्यते । पिता प्रधान प्रजने तस्माद्धर्मेण तं भजेत् ॥१२॥ पुत्रः कनिष्ठो ज्येष्ठायां कनिष्ठायां च पूर्वज । कथं तत्र विभागः स्यादिति चेत्संशयो भवेत् ॥१२॥" प्रधान की प्रधानता धर्मानुकूल सिद्ध नहीं है । और उत्पादन मे पिता प्रधान है। इस कारण धन से उसकी सेवा करे ॥१२॥ प्रथम विवाहिता मे कनिष्ठ पुत्र और द्वितीय विवाहिता मे ज्येष्ठ पुत्र हो तो वहां किस प्रकार विमाग होना चाहिये ? यदि इस प्रकार का संशय हो तो-||१२२॥ "एक वृषभमुद्वार संहरत स पूर्वजः । ततोऽपरे ज्येष्ठवपास्तदूनानां स्वमातृतः ।।१२।। ज्येष्ठस्तु जातो ज्येष्ठायां हरवृपभपोडशा' । ततः स्वमात्त. शेषा भजेरनिति धारणा ॥१२४॥" पहिली में उत्पन्न हुवा वह कनिष्ठ भी एक श्रेष्ठ बेल मेंट में ग्रहण करें। उस के अनन्तर कनिष्ठाओ से उत्पन्न हुने पुत्र क्रम से अपनी २ माताओं के विवाहक्रमानुसार ज्येष्ठ हों, वे एक एक युपम ग्रहण करें।। १२३।। (इस श्लोक का पाठ भी अस्तव्यस्त