पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/५१७

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मनुस्मृति भाषानुवाद ५१४ माता का कोचना कुमारी का ही भाग है और अपुत्र का संपूर्ण धन दौहित्र ही लेवे ॥१३शा दौहित्र ही अपुत्र पिता का संपूर्ण धन ले और वही पिता और नाना इन दोनो को पिण्ड देवे (पिण्डदान का तात्पर्य वृद्धावस्था में सेवार्थ भोजन प्रासादि देना जानो) ॥१३॥ पौत्रदौहित्रयोकि न विशेषोऽस्ति धर्मतः । तयोहि मातापितरौ संभूतौ तस्य देहतः ॥१३३॥ पुत्रिकायां कृतायां तु यदि पुत्रोऽनुजायते । समस्तत्रविमागः स्याज्येष्ठता नास्ति हि स्त्रियः।१३४ लोक मे पुत्र और दौहित्रो की धर्म से विशेषता नहीं है क्योंकि उनके माता पिता उसी के देह से उत्पन्न हैं ॥१३शा पुत्रिका करने पर यदि पीछे से पुत्र हो जावे तो वहां (पुत्र तथा दौहित्र के) सम विभाग करें। क्योकि स्त्री की व्यता नहीं है ।।१३।। अपुत्रायां मृतायां तु पुत्रिकायां कथञ्चन । धनं तत्पुत्रिकामा हरेतैवाऽविचारयन् ॥१३५।। अकृना या कृता वापि थे बिन्देत्सदृशात्सुतम् । पौत्री मातामहस्तेन दयात्पिण्ड हरेद्धनम् ।।१३६॥ "पुत्रिका' कदाचित् पुत्र रहिता ही मर जावे तो उस धनको पुत्रिका का पति ही विना विचार किये लेले ॥१३५।। पुत्रिका का विधान किया हो वान भी किया हो समान जाति वाले जामाता से जिस पुत्रको पावे उसी से मातामह पौत्र वाला कहावे और पिण्ड दे और घन ले ॥१३॥ पुत्रेण लोकान् जयति पौत्रेणानन्त्यमश्नुते ।