पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/५६२

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दशमा:ध्याय क्षत्रशूद्रवपुर्जन्तु लोनाम प्रजायते ॥६॥ विप्रस्य त्रिपु वर्षेषु नृपतेर्णियाह यः । श्यस्य वणे चैकस्निपडेते सदाः स्मृताः ॥१०॥ क्षत्रिय से शूठ कन्या में क्रूर आचार विहार वाला और क्षत्रिय शह शरीर वाला 'उम" नामक उत्पन्न होता है ।।९। बामण के तीन वर्ण की (क्षत्रि गदि बिया) में और क्षत्रिय कविशा वा शदा) में तथा वैश्यक । (गुला) में (उत्पन्न हुये) ये छ "अपसद" कह गये हैं ॥१०॥ अत्रियातिकमायो चूतो भवति जामिल । वैश्यामागधनदेही गाजविप्राङ्गनासुनी ॥११॥ शदादावोगवःत्ता चण्डालन्याऽयमोनृणाम् ।। वैश्यराजन्यविप्रामु जायन्त वर्णमंकराः ॥१२॥ (ये अनुलाम कह कर अत्र प्रनिलाम कहते है) चत्रिय से घायण की कन्या में "सून नाम जाति में होता है और वैश्य से क्षत्रिया में मागध' तथा वैश्श सं नामशी में "वेदेह' नाम उत्पन्न होते हैं ॥११॥ शूह से वैश्शा क्षत्रिया तथा वागणी कम के साथ यायोगव "नता" और 'चण्डा अधम, ये (श्लोक ६से यहा तक कह) मनुष्यों मे वर्णसङ्कर अन्न होते हैं ॥१२॥ एकान्तरे त्वानुलोम्यादम्बष्ठोग्रौ स्थास्मृता । चच बैदेहकी तद्वत्यानिलाम्बेऽपि जन्मनि ॥१३॥ पुत्रा येऽनन्तरस्त्रीजाःक्रमणोक्ता द्विजन्मनाम् । वाननन्तरनाम्नस्तु मादापात्प्रचक्षते ॥१४॥ द