पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/५६१

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मनुस्मृति भाषानुवाद स्त्रीष्वनन्तरजातासु द्विजैरुत्पादितान्सुतान् । सदृशानेव तानाहुर्मदापविगार्डनान् ॥६॥ ब्राह्मणादि चार वर्षों में अपने समान वर्ण की (विवाह से पूर्व) पुरुप सम्बन्ध से रहित पलियो मे क्रम से जो सन्तान उत्पन्न हो उनको जाति से वे ही जानना चाहिये । (इस प्रकरण मे जो जातियो का विचार है सो इस लिये है कि गर्भाधान से लेकर जन्मत्यन्त हुव संकारों के प्रभाव से जन्म काल मे वह उस २ नामस पुकारने योग्य है । परन्तु यह कथन उस अपवादका बाधक नहीं जा विपरीत प्रावरणादि से वर्णव्यवस्था स्थापन मानव शास्त्र का सिद्धान्त है) 1॥५॥ क्रम के साथ अपने से (अर्थात प्राण से क्षत्रिया में क्षत्रिय से वैश्या में इस प्रकार) एक नीचे की हीन जाति की स्त्रियो मे द्विजो के उत्पन्न किये हुवे सन्तानो को माताकी जातिसे निन्दित, पिता समान ही (पतित) कहते हैं ।।६।। अनन्तरामु जातानां विधिरेप सनातनः । हुयेकान्तरासु जाताना धयं विद्यादिमं विधिम्।।७।। बामणावश्यकन्यायामम्बाठो नाम जायते । निषादः शूद्रकन्यायां यः पारशव उच्यते । ८।। अपने से एक वर्ण हीन स्त्रियों में उत्पन्न हुवो का यह सनातन विधि कहा अब दो वर्ण हीना स्त्रियोमे (जैसे ब्राह्मण से वेश्या में) सत्पन्न हुवो का यह धर्मविधि जाने कि-II Enाण से वैश्या कन्या मे "अम्बष्ठ" नाम उत्पन्न होता है और ब्राह्मण से शून कन्या में निपाढ जिसको 'पारशव भी कहते है ॥८॥ चावरच्छद्र कन्यायां राचारविहारवान् ।