पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/५६४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

रामाऽध्याय दहकन लम्बष्टयामुत्सन्नो बेण उच्यते ॥१९॥ द्विजातयः सवर्णासु जनयन्यत्रतांस्तुयात् । तान्सावित्रीपरिम्रप्टान् ब्रात्यानिति विनिदिगन्।२०। ऐसे ही पता से उम्र की कन्या में उत्पन्न हुया "श्वपाक' कहाना और बदह से अम्बष्ठी में (उत्पन्न हुना) "वण" कहाना है।॥१९॥ द्विजाति अपने वर्ण की स्त्री में सम्बार रहिन जिन पुत्रों को उत्पन्न करते हैं उन समय पर उपनयन द्वारम्भ रहितों का "प्रात्य" कहना चाहिये । वास्यानु जायने विप्रात्तापात्मा भूफएटकः । पावन्त्यबाटधानी च पुष्पधः शैख एव च ।।२१।। झालोमलच राजन्या नात्यानिच्छिविरंबच । नटश्च करणचैव वसा द्रविड एव च ॥२२॥ प्रात्य साबण से पापामा "भूजकण्टक" उत्पन्न होता है और साका (दश भद में) श्रावन्त्य वाढवान पुनय और जय मी कहते हैं MRAT (प्राय) क्षत्रिय से नह मन निच्छिति नट, करण रूम और द्रविड नामक उन्पन्न होते हैं ।।२।। न्याच जायते नात्यान्मुधवाचार्य एव च । काम्पा विजन्माच मैत्र: मावतएवच ॥२३॥ त्यभिचारेण वर्णानामबंद्यावेदनेन स्वकर्मणां च त्यागेन जायन्ते वर्णमहराः ॥२४॥ प्रात्य वैश्य से सुधन्वाचार्य का रूप, विजन्मा मैत्र और सान्त्रत नाम वाले उत्पन्न होते हैं (यसव नाम पर्यायवाची देश चा