पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/५७३

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५७० मनुस्मृति भाषानुवाद राष्ट्रक सह तद्राष्ट्र क्षिप्रमेव विनश्यति ॥६१।। बामणार्थे गवाणेवा देहत्यागोऽनुपस्कृतः । स्त्रीवालाभ्युपपत्तौ च बाबानां सिद्धिकारणम् ॥१२॥ जिस राज्य मे ये वर्ण सङ्कर बहुत उत्पन्न होते है. वह राज्य वहां के निवासियों के सहित शीघ्र ही नाश को प्राप्त हो जाता है ॥६१|| ब्राह्मण, गाय, स्त्री वालक इन की रक्षा मे दुष्ट प्रयोजन से रहित होकर प्रतिलोमजो का प्राणत्याग सिद्धि (उच्चता) का हेतु है ॥६शा अहिंसा सत्यमस्तेयं शौचमिन्द्रियनिग्रहः । एवं सामासिक धर्म चातुर्येऽवत्रीन्मनुः ॥६३॥ "शूदायां ब्राह्मणाज तः अयसा चेत्प्रजायते । अश्रयान्भेयसी जाति गच्छत्यासप्तमाधुगात् ।।६४॥" हिंसा न करना सत्य भाषण दूसरे का धन अन्याय से न लेना पवित्र रहना और इन्द्रियो का निग्रह करना यह संक्षेप से चारो वणों का धर्म (मुझ) मनु ने कहा है ।।६।। 'शुदामें ब्राह्मण से पारशवाख्य वर्ण उत्पन्न होता है। यदि वह दैववशसे स्त्री गर्भ हो और वह स्त्री दूसरे ब्राह्मण से विवाह करे और किर उस की कन्या तीसरे ब्राह्मण से विवाह करे इस प्रकार सातवे जन्म में प्रामणता को प्राप्त होता है। (यह श्लेाक इस लिये अमान्य है कि शूठागामी ब्राह्मण तृतीयाध्यायानुसार पतित हो जाता है तो ऐसे सात ब्राह्मणो को ७ पीढ़ी तक पतित कराने वाला श्लोक मनु का सम्मत हो सो ठीक नहीं जान पड़ता) ॥४॥