पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/५७४

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दशमाऽध्याय शुद्रो ब्राह्मणतामेति ब्राह्मणरतिशूद्रताम् । क्षत्रियाज्जातमेवन्तु विधा श्यागथैव च ॥६५॥ अनार्यायां समुत्पनो श्रामणाच यदृच्छया । बामण्यामप्यनार्याच श्रेयस्त्वं स्वैतिचेद्भवेत्।।६६।। ब्राह्मण शुद्रता को प्राप्त हो जाता है और शूद्र श्राह्मणता को प्राप्त हो जाता है। क्षत्रिय से उत्पन्न हुवा भी इसी प्रकार और वैसे ही वैश्यसे हुवा पुरुष भी अन्य वर्ण को प्राप्त होता जानना चाहिये १६जो संयोगवश ब्राह्मणसे शुभ मे उत्पन्न हुवा और जो शुद्ध से ब्राह्मणी में उत्पन्न हुवा, इन दोनो मे अध्यापन किस में है यदि यह संशय हो (वो उत्तर यह है कि-)॥६॥ जातो नार्यामनार्यायामार्यादाभिवेद्गुणैः । जातोयना दायर्यायामनार्य इति निश्चयमा छ। त बुभावग्यसंस्कार्याविति धो व्यवस्थितः । गुण्याजन्मनः पूर्णउचरः प्रतिलोमतः ॥८॥ १ अनार्या स्त्री में आर्य से उत्पन्न हुवा गुणो से प्रार्य हो सकता है और दो र शर से ब्राह्मणी स्त्री मे उत्पन्न हुवा गुणों से शूद अपन्न होना संभव है । यह निश्चय है ॥६ला धर्म की मर्यादा है कि १ पहला शूद्रामें उत्पन्न होने रूप जाति की विगुणता से और दूसरा प्रतिलोम से उत्पन्न होने के कारण, ऐसे ये दोनो उप नयन के अयोग्य हैं ॥६॥ - सुबीजं चैव सुजातं संपद्यते यथा । तथायर्याज्जातपार्यायां सर्ग संस्कारमहति ॥६६॥