पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/६०७

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६०४ मनुस्मृति भाषानुवाद भूमिवज़मणीनां च रुक्मस्तेयसमं स्मृतम् ॥१७॥ रेता सेक: वयोनीष कुमारीवन्त्यजासु च । सख्युः पुत्रस्य च स्त्रीषु गुरुतल्पसमं विदुः ।।५८! धरोहर और मनुष्य, घोड़ा चान्दी, भूमि, हीरा और मणियों का हर लेना सुवर्ण की चोरी के समान हैं ।।५७सहोदरा भगिनी कुमारी चाण्डाली सखा और पुत्र की स्त्री इनसे व्यभिचार करना गुरुमार्यागमन के सामन (महापातक) है | गोवघोऽयाज्यसंयाज्यपारदार्यात्मविक्रयाः । गुरुमास्तृित्यामः स्वाध्यायाग्नयोः सुतस्य च ॥ परिविचितानुजेस्नुढे परिवेदनमेव च। तयोर्दानं च कन्यायास्तयोरेव च याजनम् ॥६॥ गाय का मारना, दुष्टों को यज्ञ कराना, परस्त्री गमन करना, आत्मा का बेचना गुरु, माता-पिता ब्रह्मयज्ञ-ौतस्मात अग्नि में होम और पुत्र का त्यागना ॥१९॥ छोटे का पहिले विवाह करने में ज्येष्ठ की परिविचिता कनिष्ठ को परिवेत्ता होना, उन दोनों को कन्या देना और उन दोनों को यज्ञादि कराना ना कन्यायापणं चैव वायूंष्यं प्रतलोपनम् । तडागारामदाराणामपत्यस्य च विक्रयः ॥६१॥ प्रात्यताबान्धवत्यागो भृत्याध्यापनमेव च । मृताचाध्ययनादानमपण्यानां च विक्रयः ॥६॥ और कन्या का दूषित करना, (वैश्य न होकर) सूद का लेना व्रतमन करना, तालाब, बगीचा. स्त्री और सन्तान का बेचना