पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/६०६

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६०१ एकादगाम्याय बडमकान्धवधिगविकताकनयम्नया इस प्रकार विशेष मे सज्जनों मे निमित जड़, मूक. बघिर और विकृत भारति वाले उत्पन्न होने हैं ।।२।। चरितव्यमतो नित्यं प्रायश्चिचं विशुद्धरे। निन्द्राहि लनयुत्ता जायन्ने निष्कतेनमः ।।५।। ब्रह्महत्या मुगपानं स्तवं गुबगुनागमः । महानि पानकान्याहुः संसर्गप्रापि ते सह १५४१ दिना प्रायश्चित करने वाले निन्ध लक्षणों में युक्त उत्पन्न होते हैं। इस कारण शुद्धि के लिये प्रायश्रिन अवश्य करना चाहिये ।।५॥ ब्रहत्या मदिरापान चोरी की स्त्री में व्यभिचार उनको महाराना कहते है और इन महागनकियां के माय रहना भी (उमी के ममान है ।। अन्नं च समुन्कर्षे राजगाम च पैशुनम् । गुगेवालीकानन्धः समाति ब्रहत्यया ॥५॥ अंओझता बनिन्ना काटमान्य मुद्राधः । महितानाद्ययान्धिः मुरापानसमानि पट् ॥५६॥ अपनी बड़ाई के लिये अमत्य भाषण करना राजा से चुगली करना और गुर मे vी स्वथर फहना ये ब्रह्महत्या के समान है १२०॥ वेट कासगना वेट को निन्दा करना नदी गवाही देना तथा मित्र का वध निन्दित लघुनादि और पुरीपादि अमात्य का भक्षण ये छः मुरापान के समान हैं ।।१६।। निवेपस्यापहरणं नरावरजतस्य च।