पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/६०९

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६०६ मनुस्मृति भाषानुवाद के ठक लेने और महायन्त्रों के चलवाने में जीवों की हिंसा है। उसके प्रायश्चित्त उन लोगों को करने चाहिये। मारण में दूसरे का स्पष्ट अपकार है । वशीकरण में दूसरे को अन्नानी वा पराधीन करना बुरा है । ( वशीकरण किसी के पाम सुन्दर स्त्री आदि भेज कर उस को माहित करने से होता है) ब्रायस्य रूजा कृत्या प्रातिर यमद्यये । वैाच च मैथुन पुन्सि जातिभनराकर स्मृतम् ॥६७। खराश्वाप्टमगेमानामनाविकधस्तथा । संकरीकरणं गं मीनाहिमहिपस्व च ॥६८' ब्राह्मण को लाठी आदि से पीड़ा देने की क्रिया करना दुर्गन्ध और मद्यका सूंघना कुटिलता करना तथा पुरुषसे मैथुन करना इन का जानिन शकर पातक कहा है ||६७॥ गर्दभ, तुरङ्ग, इन्द्र, मृग. हम्ती बकरा भेड़, मत्म्य, सपं महिप, इन में प्रत्येक के वध “सङ्करीकरण, कहते हैं ॥६॥ निन्दि भ्वा धनादानं वाणिज्य शूद्रसेवनम् । अपात्रीकग्णं ज्ञेयमसत्यस्य च भापणम् ॥६६॥ कृमिकीटबयोहत्या मद्यानुगत भोजनम् । फलधः कुसुमस्तेयमधैर्य च मलावहम् ॥७०|| अप्रतिमास पुरुषों के धन का प्रतिग्रह लेना, (वैश्य न होकर) वाणिज्य करना शूद्र की परिचर्या और झूठ बोलना, इन को "अपात्रीकरण" जाने ॥६९॥ कीड़े मकौड़े पक्षी की हत्या मा के साथ मिला भोजन फल इन्धन और पुष्प का चुराना और अधीरता को "मलिनीकरण" कहते हैं ॥७॥