पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/६५७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

६५४ मनुस्मृति भाषानुवाद मौन को वाग्दण्ड, अनशन को मनोदण्ड और प्राणायाम को शारीरिक दण्ड कहते हैं | वाग्दण्डोग्य मनोदण्डः कायदण्डस्तथैव च । यस्यैते निहिता बुद्धौ त्रिदण्डीति स उच्यते ॥१०॥ पाणी का दमन (अशुभ कर्म से रोकना) तथा मनका दमन और कार्य का दमन, ये तीनों जिसकी बुद्धि में स्थित हैं वह "त्रिदण्डी" महाता है ॥१०॥ त्रिदण्डमेतनिक्षिप्य सर्वभूतेषु मानवः । कामक्रोधौ त संयम्य ततःसिद्धि नियच्छति ॥११॥ योऽस्यास्मनः फारयिता ते चेत्र प्रचक्षते । यः करोति तु कर्माणि स भूतात्मोच्यते बुधैः ॥१२॥ मनुष्य सम्पूर्ण जीवों पर इन तीनो प्रकार का दमन करके काम, क्रोधों को रोककर फिर सिद्धि प्राप्त होता है।शा जोइस आत्मा की कर्म में प्रवृत्त करने वाला है उसको क्षेत्रज्ञ" कहते हैं और जो कर्म करता है, बुद्धिमान लोग उसको भूतात्मा कहते हैं।॥१२॥ जीवसंज्ञोऽन्तरात्मान्यः सहजः सर्वदेहिनाम् । येन वेदयते सर्व सुखं दुःखं च जन्मसु ॥१३॥ तावुभौ भूतसंपृक्तौ महान्देत्रज्ञ एव च । उच्चावचेषु भूतेषु स्थित तं व्याप्य तिष्ठतः ॥१४॥ सम्पूर्ण देहियों के साथ होने वाला दूसरा जीवसंहा वाला (अन्तःकरण) अन्तरात्मा है, जिससे जन्मों में सम्पूर्ण सुख दुःख