पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/६८२

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। द्वादशाऽध्याय ६७९ एवं यः सर्वभूतेषु पश्यत्यात्मानमात्मना । स सर्वसमतामेत्य ब्रह्माऽम्येति परम्पदम् ॥१२५॥ "इत्येतन्मानवं शास्त्र भूगुप्रोक्तं पठन्नुिजः । भनत्याचारवानित्यं यथेष्टां प्राप्नुयाद् गतिम् ॥१२॥ इस प्रकार जो सब मे आत्मा परमात्माका देखता है वह सम- दृष्टि होकर परमपद ब्रह्मको प्राप्त होता है।।१२५।। इस प्रकार यह मनु का शास्त्र भृा ने कहा है। इसको पढ़ने वाला द्विज सर्वदा चार वाला और यथेट गति को प्राप्त होता है" ।। (यह वचन से भी पीछे बनाकर मिजाया गया सष्ट है) ॥१२६।। इति मानवे धर्मशास्त्र ( भृगुप्रोक्तायां संहितायां) द्वादशोऽध्यायः||१२|| । इति श्री तुलसीरामस्वामिविरचिते मनुस्मृतिभापानुवादे द्वादशोऽध्यायः ॥१ C