पृष्ठ:मरी-खाली की हाय.djvu/१०

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स्वदेश ! ऐ ! मेरे स्वदेश । तुम कौन हो ? मैं तुम्हें जानता तो हूँ, पर पहिचानता नहीं हूँ। जब मैं छोटा था तब तुमने मुझे पाला। जब मेरे जननी जनक छोटे थे तब उन्हें भी तुमने पाला। उनके भी पिता-हमारे दादा-जब छोटे थे तब उन्हें भी तुमने पाला था। उनके भी पिता-पिता, उनके भी पिचा--प्रपिता को तुमने अनन्त काल से पाला है। ओह ! तुम कितने पुराने हो ! मेरे स्वदेश ! यह हिमालय के बर्फ से ढका हुआ तुम्हारा अच्क्ष श्वेत शिर इसकी गवाही है। वह कैसा प्यारा है। कितना ठण्डा है ! कैसा सुन्दर है ! सच है तभी तो तुम में सका सब कुछ सह सकने की क्षमता है। यह काव्य सन् २१ में सत्याग्रह संग्राम छिड़ने पर देश भक्ति से प्रेरित हो कर लिखा गया था। JAWA