पृष्ठ:मरी-खाली की हाय.djvu/११

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बाँधा पर ( गौरी का अगौरव, गजनवी का गजब, नादिर की नादानी और तैमूर की करल, यह सब चुपचाप-बिलकुल चुपचाप सह लिया । जब तुम से पूछा "क्या हुआ ?" तो तुमने हँस कर कहा "कुछ नहीं, वह सब अबोध बालकों की नादानी थी।" आँखों में मौज थी, होठों पर मुस्क्यान, मन में सफाई थी, हृदय में उमङ्ग, न गिला न शिकवा । यह सब तुम्हारी सफेदी को सज गया। तुम्हारे पुत्रों ने अपनी क्षमता से उन्हें पकड़ा, क्षमा से छोड़ दिया। उन्हीं को उन्होंने छल से मारा, लूटा और क्या २ न किया ? पर जब वे तुम्हारी गोद में आपड़े, तो तुम्हारे लाडिले तुम्हारे पास आये, उन्होंने रोष भरे नेत्रों से कहा "पिता ! यह क्या ? तुम्हारी शिक्षा के कारण हमने इन्हें क्षमा किया। पर इन्होंने छल से हमारा सर्वनाश किया । तुमने उन्हें छाती से छिपा कर कहा-जाने दो, ये बिना माँ बाप के तुम्हारे बाप को अपना बाप बनाने आये हैं। ये तुम्हारे भाई हैं। लो ! इनका हाथ लो!!” इतना कह कर उनका हाथ अपने पुत्रों के हाथ में मिला दिया । तुम इतने उदार हो ? ऐ ! मेरे महान स्वदेश! 'ऐ ! मेरे स्वदेश! बताओ, मेरी माता तुम्हारी कौन थी ? और पिता कौन थे ? वह सदा तुम्हारी तारीफ़ के पुल बाँध 1