पृष्ठ:मरी-खाली की हाय.djvu/१०७

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( ६८) 16 युवक हर्षातिरेक से विह्वल हो कर लौटा- "कहो, बहिन क्या कहती हो ?' "तुम्हे पाना पड़ेगा" बालिका ने मन्द मुसकान से कहा उस अभेद्य अन्धकार में वह मुसकान को देख तो न सका-पर अनुभव करके बोला- "आऊँगा बहिन !" "नाम तो बत्तानो !" "देवीसिंह । "अच्छा, बैशाख कृष्ण तेरस । याद रहेगा!" "अवश्य, यदि स्वाधीन रहा तो आऊँगा जरूर।" "श्राना ही पड़गा" "आऊँगा बहिन ।" नायक हँस पड़ा फिर रो पड़ा । उसने बालिका के पैर और मण्डली-सहित अन्धकार में डूब गया। (४) बैसाख कृष्ण तेरस थी। कृष्णा का आज ही विवाह था । घर में धूम थी । बरात आ गई थी। ज्यों-ज्यों दिन ढल रहा था कृष्ण का उद्बग बढ़ता जाता था। वह प्रति क्षण देवीसिंह के श्राने की प्रतीक्षा में थी। सन्ध्या हो गई। दिये जल गये । द्वार