पृष्ठ:मरी-खाली की हाय.djvu/११९

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( ११० ) और चली, सैकड़ों पुरुष पीछे थे। दो घण्टे बाद सब के साथ वीरबाला जेल में थी-मयानक कोठरी में बन्द । (३) "तुम ने यह क्या किया ?" “जो कुछ तुम्हें करना चाहिये था ।" "मुझ से कहा क्यों नहीं" "तुम इस योग्य न थे!" "अब!" "तुम भागो मैं यहाँ तुम्हारे स्थान पर जीते जी हूँ।" "मैं भागा !" "तब क्या करोगे ! "मैं कहूँ !" "अवश्य " "और तुमसे !" "मुझ से युवती जार से हँसी । हँसी में अवज्ञा थी। उसने कहा- तुम्हारे उस त्याग और वीरता के रूप को ही मैंने प्यार किया था, पर उसके भीतर तुम्हारा यह आदर रूप है, इसकी आशा न थी । जाओ-हिंदू स्त्री एक ही पुरुष को जीवन में प्यार करती है। मैंने जो भूल की है उसका प्रतिरोध करूँगी। जाश्री प्यारे,