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( १११ ) जीवन का बहुत मूल्य है"। इतना कहकर युवती कोठी में पीछे को लौट गई। वार्डर ने युवक को बाहर कर दिया। ४ मास के बाद युवती ने जेल से लौट कर सुना-रामनाथ का यश दिगन्त में व्याप्त है । वह इस समय जेल में है। इन चार मासों में उसने वीरता की हद कर दी है। वह किसी तरह न रुक सकी। जेल में मिलने गई-रामनाथ जेल के अस्पताल में विषम ज्वर में भुन रहा था । "कैसे हो ? "ओह तुम आ गई ! देखो कैसा अच्छा हूँ।" मुझे क्षमा करो, मैंने तुम्हारा अपमान किया था।" "तुमने मेरे मान की रक्षा किस तरह की है, वह कहने की 6 वस्तु नहीं "अब ? - मैं मारूगा नहीं-फिर जुगा। "तब तक मेरी प्यारी-तुम मेरे स्था पर'" "पर मैं व्याख्यान नहीं दे सकती” "उसकी जरूरत नहीं, तुम्हारे मौन भाषण में वह बल है कि बड़े वाग्मियों की मर्यादा की रक्षा हो जाती है। "तबियत कैसी है "