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पृष्ठ:मरी-खाली की हाय.djvu/१२१

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( ११२ ) 'अब और कैसी होगी ?" "मैं आशा करती हूँ, शीघ्र अच्छे हो जाओगे" "और बाहर आकर अपनी सिंह वाहिनी को युद्ध करते आँखों से देखू गा" "मुझे क्या अज्ञा है" "ग्रही कि जब जब मैं नामर्द बनू अपना प्यार और हृदय देकर वीर बनाये रखना।"