पृष्ठ:मरी-खाली की हाय.djvu/१४३

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(१३४ ) अब तुम्हारे वे बदमाश दोस्त कहाँ हैं ? जिन्होने तुम जैसे सीधे सादे गरीब आदमी को कसाया। हम जानते हैं कि तुम बैंकसूर हो पर भाई तुम इसके सुराग हो साँस गाँस बताओ तो कुछ पता चले। हमारा काम अपराधियों को पकड़ना है, भले मानसों को सताना नहीं। देखो भाई पुलिस को लोग नाहक बदनाम करते हैं, कि आदमियों को सताती है। क्या तुम्हें कुछ तकलीफ है ? तुम चाहे जिससे मिलो, पत्र लिखो खाओ, पत्र कपड़े मंगाओ तुम्हें छुट्टी है। ये सारी बातें हरसरन मानो पत्थर की मूर्ति की भाँति सुनता हुआ जड़वत बैठा रहता और एकाएक गर्ज कर कहता- "बुरा हो तुम्हारा।" बड़े साहब और छोटे साहब भी यही जवाब पाते । डिप्टी सुपरिन्टेन्डेन्ट और खान बहादूर को भी यहो जवाब था। जमादार इंस्पेक्टर सिपाही सभी को यही जवावथा, "बुरा हो तुम्हारा।" इस जड़ पदार्थ से कुछ मतलव हल होगा इसकी आशा किसी को भी न रही। बार २ रिमान्ड लिया गया अन्त में पुलिस असलियत पर आई। एक दिन दो भीमकाय कान्स्टे- बिल हवालात में घुस आये। हर सरन दीवार को मुह किये पड़ा था। कास्टेबिलों ने पुकार कर कहा- "क्यों दोस्त सोते हो या जागते हो ?'