पृष्ठ:मरी-खाली की हाय.djvu/१४४

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( 424 ) हर सरन ने बिना विलम्ब बिना हिले जुले कहा-"बुरा हो तरहारा" "अरे यार, सिगरेट बीड़ी पीओ, लो।" हरसरन का वही जवाब था। अब एक ने जोर से ठोकर लगा कर कहा "साले बुरा तेरा होगा, फाँसी जब चढ़ गा। खड़ा हो ।' दुसरे कांस्टेबिल ने उसकी गर्दन पकड़ कर अनायास ही उसे उठादिया और कहा, किसका बुरा हो ? सीधा बैठ और जवाब दे, थार लोग कहाँ २ हैं और कौन कौन हैं ?" हरसरन चुपचाप बैठ गया। दोनों कान्सटेबिलों ने उसे भरपूर मार दी। इस बार उसने अपना वह पेर्टेन्ट शब्द भी उच्चारण करना त्याग दिया। वह चुपचाप निर्जीव मांस के लोथड़े की भाँति तमाम मार चुपचाप सह गया। इसके बाद उसके दोनों हाथ चारपाई के नीचे दया कर दोनों कान्स्टेबिल उस पर बैठ गये और भाँति २ के प्रश्न पूछने लगे। वेदना से उसकी आखें निकलने लगी प्यास से कण्ठ लटपटा गये । धीरे २ सारा दिन व्यतीत हो गया । भूख प्यास नींद और वेदना सभी ने उसके साधारण क्षुद्र शरीर पर पूर्ण वेग से आक्रमण किया । पर क्या शंकर की आत्मा उस पर अवतीर्ण हुई, या कोई पिशाच उसे सिद्ध था वह निर्लेप निर्विकार उस.बेदना को बिना एक बार उफ किये सहन कर