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(१४७ ) धीरे २ रात हुई और वह क्रमशः गम्भीर होती गई । फिर ध्वनि आई-"टिक टिक टिक" हर सरन झपट कर वहाँ जा पहुँचा। "तुम झूटे लवार, दुष्ट ।" "आह, क्या तुम्हारा सिर बिल्कुल फिर गया है । शान्त हो भाई, बहुत बुरी खबर है, क्या तुम्हें देखने डाक्टर नहीं आया ? "कौन सी खबर है, कहो, कहो ?" "वह कहने योग्य नहीं । “कहो, अरे दुष्ट कहो।" मैं तुम्हारी गालियों का बुरा नहीं मानूंगा । ईश्वर तुम्हे शान्ति दे, क्या तुम इस खबर को सुन सकते हो ?" "कह, अरे पाजी कह । "उसने स्वीकार कर लिया।" "किसने " "तुम्हारे मित्र ने " "क्या ? "कि वह तुम्हारी पत्नी का ज़ार है और वह उसकी रखेली है।"