पृष्ठ:मरी-खाली की हाय.djvu/१७०

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"हाँ हाँ, मैं डिक्टेटर हूँ साहब ।" "तो आपका वारंट है।" “पारंट !" डिक्टेटर साहब का चेहरा सफेद हो गया। मित्र-मंडली ने उत्तजित होकर कहा-वारंट ?" “जी हाँ, वारंट है, आप क्या चाहते हैं ? श्रापको गिर- फतार करने हम लोग वहाँ श्रावें, या श्राप स्वयं गिरफतार होने थाने में तशरीफ ला रहे हैं।" "थाने में ? धीमे स्वर से टर्र साहब के मुह से निकल गया । उन्होंने थूक सटककर मित्रों से "कहिए, आपकी क्या राय है ? वे पूछते हैं, थाने में मैं पा रहा हूँ, या वे लोग गिरफ्तार करने यहाँ प्रावें?" सब लोग चीखकर बोले-"हम लोग आपका जुलूस बनाकर ले चलेंगे। उनसे कह दीजिए, उन्हें अपने मनहूस कदम यहाँ लाने की ज़रूरत नहीं ?" टर साहब ने फोन पर मुंह लगाकर कहा-"मैं सिर आँखों पर थाने आ रहा हू" फोन खट से रख दिया गया। मित्रों में स्फूर्ति आ गई। एक महाशय ने उछलकर फोन उठा लिया, और दनादन नगर के १०-२० मुख्य मुख्य ठिकानों को फोन कर दिया। देखते- देखते आफिस के बाहर, आदमियों की भीड़ लग गई । इन्कि- लाब जिंदाबाद' के नारों ले आस-पास के मकान हिल गध । 1