पृष्ठ:मरी-खाली की हाय.djvu/१८१

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आशा के तार आशा प्यारी! रात चाहे जैली अन्धेरी हो। और चाहे जैसा आँधी और तूफान उमड़ रहा हो। चाहे प्रलय के बादल गज रहे हों और उस भयानक जंगल में चाहे जितने शेर, चीते, सर्प, नद, नाले और ऊबड़ खाबड़ पर्वत हो, मार्ग चाहे न दीखता हो, पर तेरे उली तार के सहारे-हृदय को आनन्दित कर देने वाली ध्वनि में, उसी तार की तुन तुनी बजाता हुश्रा, मस्त वायु में झूमता हुअा-अचल भाव से चले ही जाऊँगा स्त्री, पुत्र, धन, और यश चाहे मेरा साथ छोड़ दें। दुनिया चाहे मुझे अभागा कहे-अविश्वासी कहे । पर हे उज्ज्वल आलोक की देवी ! हे साहस और धीरज की अधिष्ठात्री ! हे मन की रानी! आशा ! आशा ! तू मुझे मत छोड़। बिजली की तरह हृदय में चमकती रह । अन्धे भिखारी के इकतारे की तरह एक स्वर, एक ताल में बजती रह मैं भूखा, प्यासा, थका, जख्मी, रोगी अपाहिज और दुखिया है। पर तेरे इकतारे की तुनतुनी की तान पर अवश्य नाचू गा। दिखा अपना तार ! ओफ ! मिल गये आशा के तार !!!