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सबसे अधिक आत्मदर्शन किया है। और तुमने ही हम सब से अधिक भविष्य दर्शन किया है। अरे ! ओ ! दिव्यदर्शी ! ठहर, हम जरा तेरे दर्शन कर लें। उस दर्शन में विश्व दर्शन आत्म दर्शन, भविष्य दर्शन सब कुछ हो जायगा। उन्होंने वेदना की कण्टकमयी शैया तुम्हारे लिये लोह पुष्पों से सजा रक्खी है, और हम सब उसके रखवाले हैं । तुम सोओ उस पर, व्यथितः हृदय लेकर और हम देखें तुम्हें शून्य हृद्य होकर !!! हायरे हम !!!