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पृष्ठ:मरी-खाली की हाय.djvu/६१

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( ५२ ) "कहाँ जा रहे हैं ? शुद्ध अंग्रेजी उच्चारण सुनकर मैंने अकचकाकर उसकी ओर देखा, वह तीव्र दृष्टि से मेरी ओर ताक रही थी। वह दृष्टि एक बार बलात् मेरे हृदय में घुस गई। मैं काँप गया- क्यों ? यह नहीं कह सकता। मैंने कुछ शंकित स्वर में कहा- "मेरठ, आप कहाँ जायँगी ?" मानो मेरा प्रश्न उसने सुना ही नहीं। उसने फिर पूछा-~- "आप वहीं रहते हैं ? अपने प्रश्न का उत्तर न पाला मुझे अच्छा नहीं लगा, पर मैंने संयम से कहा-"नहीं, मैं दिल्ली में रहता हूँ। वहाँ मैं एक मित्र के यहाँ शादी में जा रहा हूँ।" मैंने देखा, इस उत्तर से उसे कुछ सन्तोष हुआ, और उसके चेहरे का भाव बदल गया । इस बार उसने कोमल तथा विनम्र स्वर में पूछा-"आप दिल्ली में क्या काम करते हैं ?" "मैं वकील हूँ।" यह उत्तर सुनकर वह कुछ देर चुप रही, फिर उसने कहा- "क्षमा कीजिए, मैं वकीलों से घृणा करती हूँ, परन्तु आप एक सज्जन आदमी प्रतीत होते हैं।" उसकी इस दबङ्गता पर मैं हैरान हो गया। पर मैं उसकी बात को बुरा न मान सका । एक प्रकार से उसका रुाब मुझ