पृष्ठ:मरी-खाली की हाय.djvu/६२

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मैंने पर छा गया, 6 अत्यन्त नम्रता से पूछा- "क्षमा कीजिए, यदि हर्ज न हो, तो आप अपना परिचय दाजिए।" "मेरा परिचय कुछ नहीं, पर आप चाहें, तो मुझे कुछ सहायता दे सकते हैं।" मैं कुछ सोच ही न सका । मैंने उतावली से कहा--"बहुत खुशी से । मैं यदि कुछ आपकी सहायता कर सका, तो मुझे श्रानन्द होगा, उसने बिना ही भूमिका के कहा- 'मैं एक दिन केवल ठहरना चाहती हूँ।" मेरे मित्र मेरठ के एक प्रसिद्ध रईस हैं। उनका वहाँ अपना घर हैं । इस युवती को वहाँ ठहराने में कोई बाधा न थी। मेरे मुंह से निकलना चाहा कि अवश्य, पर मैं सोचने लगा यह इतनी निर्भीक, तेजस्विनी और अद्भुत युवती कौन है ? एका- एक मेरे मुह से कुछ बात न निकली। वह कुछ देर चुपचाप मेरी तरफ देखती रही। कुछ क्षण बाद पूछा 'परन्तु आपका क्या परिचय ?" उसने रुष्ट होकर कहा---- परिचय कुछ नहीं।" और वह मुह फेर कर फिर गाड़ी के बाहर देखने लगी।