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[बाईसवां
मल्लिकादेवी।

वैसाही सरला और वीरसिंह को हुआ,और दोनो की आशा पूर्ण हुई।

कमला का प्रेम सरला पर अधिक था,और सरला मल्लिका को क्षणभर भी नहीं छोडा चाहती थी, एतदर्थ वह कमलादेवी ही के घर रहती थी और इसमें वीरसिंह को भी कुछ आपत्ति नहीं थी। सरला ने कमलादेवी की शिक्षा पाई थी और वह वीरसिंह की एकमात्र पत्नी थी । उसका मत्रो महाशय के घर ही निवास था, फिर वह क्यों न साहसी और चतुरा होती!

कमलादेवी संस्कृत गौर फ़ारसी में बड़ी निपुण र्थी, अतएव सरला ने फ़ारसी और सस्कृत की अच्छी शिक्षा पाई थी और घह सेनापति वीरसिंह की उपयुक्त पत्नी और मन्त्रिजाया कमला देवी की यथार्थ पोष्यपुत्री थी।

सरला अत्यंत सुन्दरी थी। यदि मल्लिका को हम शरद ऋतु का पूर्ण शशधर कहें तो सरला बसन्त ऋतु का पूर्णचन्द्र थी। जैसी वह रूपवती थी, वैसी ही गुणवती और विद्यावती भी थी। उसे जरा अभिमान न था और वह अपने पति से बड़ा प्रेम करती थी।

यदि एकाएक मंत्री महाशय के कुटुंब पर वज्र न घहरा पडता तो यह कभी संभव न था कि सरला वीरसिंह के हृदय से पृथक होती, किन्तु दुर्घटना ही ऐसी होगई कि जिससे सरला और धीरसिंह का पूरा बिछोह होगया।

इतने पर भी यदि वीरसिंह नव्वाय के यहां गजाते और महाराज के यहा ही बराबर बने रहते तो संभव था कि सरला से उनकी जलदी भेंट होजाती, किन्तु कुचक्र ने उन्हें भी बहकावट में डाल दिया था। अस्तु, अब दुःख के दिन गए और सुख के आए, यह समझ कर सरला और वोरसिंह,-दोनो अत्यत प्रसन्न हुए।