पृष्ठ:मल्लिकादेवी.djvu/११९

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परिच्छेद]
(११७)
वङ्गसरोजिनी।

"खप्रवृत्तिरपि यत्र दुर्लभा, लोलयैव विदधाति तद्विधिः।" (सभातरङ्ग) त्रि के नौ बज गए थे। निस्तब्ध निशीथ में अंधकार रा अपना विराट रूप विस्तार करके संसार के ग्रसन के ___ लिये कृतसंकल्प था । कहीं कोई कलरव नहीं; मानो पृथ्वी ने शान्ति का वेशविन्यास किया था। कभी कभी, कहीं कहीं, निशाचर पशुपक्षी अपने चीत्कार से घोर निस्त- ब्धता भग कर भय का सचार करते थे। उसी अंधकारमय मार्ग से एक युवा पुरुष चला जाता था। अनतिदूर के प्रकांड वृक्षों को देख कर उसके चित्त में सशय उत्पन्न होता, परन्तु क्षण भर में मनही में लय भी होजाता थो। वायु के हिल्लारे से वृक्षों के पत्तों के मर्मर शब्द से खटका होता, पर इधर उधर देखने से वह दूर होजाता था। यद्यपि पशुपक्षियों के भयानक रव निर्जन धन में बड़े बड़े धीरों का धैर्य च्युत कराते थे, परन्तु-युवा ! वह युवा एकाग्र चित्त से अपने लक्ष्य की ओर चला जाता था । सहसा उसकी गति रुकी और वह संदिग्ध होकर खड़ा हो गया, तथा ध्यान पूर्वक उसने देखा कि,-'एक प्रकाडकाय अश्व मरा पड़ा है,उसका अग क्षतविक्षत और रुधिराक्त है।' युवा यह देख फर सोचने और स्वयं कहने लगा,-"आह ! आजकल हत्याकांड की सख्याही नहीं है। यह अश्व उस व्यक्ति का होगा, जो किसी शत्रु के हाथ से निहत हुआ हो ! किन्तु वह व्यक्ति कौन था और अश्व किसका हैं, यह तो कुछ भी नहीं समझ पड़ता!" ___उस कार्य के कारण को न जान कर युवा विचारते विचारते आगे बढ़ने लगा। वह थोडी दूर गया होगा कि उसने देखा कि,- 'एक रक्तमय उत्तरीय और पगडी पड़ी है।' उससे उस युवाका कुतूहल और भी बढ़ा, पर समयाभाव से युवा को बिचार करने का अवसर न मिला और वह भागे बढ़ने लगा। किन्तु माज क्या है ? युवा