परिच्छेद] घङ्गमरोजिनी। सरला,-"मल्लिका की माता जीती हैं। उनका एक अनुरोध है। बिना उसकी पूर्ति किए, मल्लिका का मिलना असम्भव है।" नरेन्द्र,-"उनका क्या अनुरोध है ? शीघ्र कहो! मल्लिका के लिये हम प्राण तक देने को प्रस्तुत हैं। " सरला,-"आपकी मार्कंडेय की सी आयु हो।" नरेन्द्र,-अस्तु,वाक्चातुरी छोड़ कर प्रकृत विषय को कहो !" सरला,-"तो सुनिए, मल्लिका के पिता को जिस दुष्ट ने षड्यंत्र करके हत किया है, जब तक आप उस दुष्ट का सिर न काट लावैगे, तब तक मल्लिका की माता मागको मल्लिका कभी समर्पण न करेंगी, उनकी ऐसीही प्रतिज्ञा है।" नरेन्द्र ने गरज कर कहा,-"अभी उस सत्यानाशी का परिचय दो। प्रथम उसका सिर काट कर तब हम दूसरा काम करेंगे! सरला! हमने भी प्रतिज्ञा की कि मल्लिका के बैरी का सिर काटे बिना कदापि उसका पाणिग्रहण न करेंगे।" ___ सरला आनद से पुलकित होकर कहने लगी,-"धन्य महाराज! आप देवता हैं ! मापसे अवश्य इस कार्य का होना सभय है. और मुझे निश्चय है कि आप इसे अवश्य पूर्ण करेंगे, परन्तु -- नरेन्द्र,-"फिर कहती हौ-परन्तु'-!!! सरला! तुम्हारे इस- "परन्तु" मय बागजाल के आगे हम परास्त हुए!" सरलो,-"महाराज! दासी का अपराध क्षमा करिए । दासी ने जो आपके संग बितडावाद किया, यह भी रहस्य से खाली नहीं है। अतएव अपनी कृपाद्वारा क्षमा कीजिए ! हां ! अच्छी सुधि आई, वृद्ध मंत्री महाशय का किसने सर्वनाश किया है ! यह आप जानते हैं ? • नरेन्द्र,-"यह नूतन रङ्ग कैसा ? इस विषयं से तुम्हें क्या प्रयोजन ?" सरला,-"सो पीछे निवेदन करूगी, प्रथम यह कहिए कि भाप इस वृत्तान्त को जानते हैं ? नरेन्द्र,-"सरला ! ईश्वर जानता है, हमने अतिशय अनुसंधान करने पर भी इस घटना का प्रकृत तत्व नहीं जाना था,किन्तु थोड़े ही दिन हुए कि अविकल वृत्तान्त जानाहै।यह घृणित कार्य तुगरल का है!" सरला,-"जानकर भी आप उस दुष्ट को दंड नहीं देते ! उस
पृष्ठ:मल्लिकादेवी.djvu/१२७
दिखावट