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पृष्ठ:मल्लिकादेवी.djvu/१२८

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( १२६ ) मल्लिकादेवी। [चौबीसवा WWWMNNAMMAnmowww पापी को आप क्या प्रतिफल देगे?" नरेन्द्र,-"समय सन्निकट है कि इसी हाथ से उस अधम का सिर काट कर मंत्री महाशय के ऋण से हम मुक्त होंगे। अभी तक अवसर नहीं आया कि उसे दंड दें।" ___ सरला,-"अहा ! आप यथार्थ ही प्रातःस्मरणीय महात्मा हैं। आपने जो उसके दण्ड का विचार किया, यह सराहनीय है, पर उसका उपाय क्या किया है ?" नरेन्द्र,-"दिल्ली के बादशाह से इस प्रकार वाक्यदान लेलिया है कि तुगरल का सिर काट कर यदि मंत्री की स्त्री वा कन्या का परिचय मिलेगा तो उनके अर्पण कर अपना कर्त्तव्य पालन करेगे। सरला! यह भी बादशाह से निश्चय होगया है कि बङ्गाल के भूम्यधिकारियों की अपहृत स्थावर किंवा अस्थावर सम्पत्तियां भी उन्हें दिलाई जायगी।" नरेन्द्र की बातें सुनते सुनते सरला का रोम रोम आनंदसिंधु में निमग्न होकर नत्य करने लगा। मुखाकृति हर्षाप्लुत और नेत्र नीरसंसिक्त हुए ! उसने गातुरता का दमन करके नरेन्द्र के चरण पर गिर कर करुणा से कहा,-"बस! महाराज! दासी कामनोरथ पूर्ण होगया। अब आप निस्सदेह शीघ ही मल्लिका को प्राप्त करेंगे। आपकी मल्लिका बड़ी भाग्यशीला है !" नरेन्द्र,-"ऐं क्या कहती हो ? इन घटनाओं से मल्लुिफा का कुछ सम्बंध है ?" ___ सरला ने अश्रु संवरण करके कहा,-"महाराज! उन्हीं मंत्री महाशय की एकमात्र पुत्री मल्लिका-आपकी हृदयहारिणी मल्लिका-सौभाग्यवती मल्लिका-मेरी सखी मल्लिका है !!!" नरेद्र,-(घबराकर )"यह क्या सत्य है ? " सरला,-" हां, महाराज! इसके सत्य होने में कुछ भी संदेह न कीजिए। यह सुनते ही सहस अशनिपात की तरह नरेंद्र धम् से भूमि में पतित हुए, उनका अग शीर्ष और मुखाकृति विषण्ण होगई। उन्होंने बोलने की चेष्टा की, किंतु बापस्फूर्ति नहीं हुई। उनकी यह दशा देख कर सरला के मर्म में भी आघात लगा, पर वह आत्मसंयम करके शांत हुई, और उसने नरेंद्र का हाथ थाम कर