पृष्ठ:मल्लिकादेवी.djvu/१२९

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5- परिच्छेद ] वङ्गसरोजिनी । (१२७) nxnwwww उन्हें उठाया और कहा,- ___“महाराज ! जो होना था, लो तो होचका: अब आप क्यों इतना खेद करते हैं ?" नरेद्र,-"सरला! हमें इस कारण दुःख हुआ कि मत्री की स्त्रीऔर कन्या को इतना दुःख है ! हा! मल्लिका की मां की ऐसी प्रतिज्ञा है !" ___ सरला,-'हां उन्हीको प्रतिज्ञा है कि, 'जो व्यक्ति तुगरल का सिर काटेगा, चाहे वह कोई हो, उसको मल्लिका अर्पण करूगी;' क्या आप उनसे साक्षात करेंगे?" नरेद्र,-"सरला! उनके दर्शन से अभी हमे हर्ष के स्थान में शोक ही अधिक होगा, अतएव तुगरल का मस्तक हाथ में लेकर तब हम मल्लिका की माता का दर्शन करेंगे।" ____ सरला,-"क्यों, क्षति क्या है ? चलिए ! माता आपके देखने के लिये उत्कण्ठित होण्ही हैं।" नरेंद्र,-"अस्त, जैसा तुम कहो, हमें स्वीकार है।" सरला,-"ता चलिए ! मल्लिका आपके देखने के लिये आतुर होरही है, उससे भी मिलिएगा।" नरेंद्र,-" सरला ! तुम्हारी असीम कृपा का, जो तुम हम पर कर रही हो, हम क्या प्रत्युपकार करें ? " सरला,-"अच्छा, वे सब बातें फिर होंगी, अब चलिए, भाधीरात होगई होगी।" नरेंद्र,-"चलो, परन्तु सरला ! तुमने अपना परिचय न दिया और न सुशीला का।" सरला,-" सुशीला का परिचय मल्लिका से सुनिएगा और मेरा वत्तान्त शोध आप जानेंगे, अब आइए।" नरेंद्र,-"चलो।" अनतर दोनों व्यक्ति वनमार्ग से होकर चले । मार्ग में सरला ने पुनः अपनायुवक वेश बना लियाथा।योहा वेदोनो नीरवचलने लगे। पाठक ! वृद्धा से जो अनुमति लेकर सरला आई थी,सो नरेन्द्र को लेकर ग्राम की ओर चली; इसी शुभ यात्रा में उसने अपने पति के भी दर्शन पाए थे।