पृष्ठ:मल्लिकादेवी.djvu/१३३

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परिच्छेद ] षङ्गसरोजिनी। (१३१) NAVANAM Anama A AAAAppamanna से रो दिया, यह मल्लिका नहीं सह सकी ! उसने सुशीला का हृदयगत भाव समझ कर भाव परिवर्शन कराने के छल से कहा.- "चल, मा बुलाती हैं !" सुशीला,-"खैर, चलो जीजी!" अनन्तर दोनों भगिनी गृहाभिमुखी हुई। पाठक ! जिस दिन सरला कमलादेवी से माज्ञा लेकर नरेन्द्र सिंह के बुलाने के लिये गई थी, यह घटना उसी दिन की है। आपको स्मरण होगा, कि मल्लिका और सुशीला, नरेन्द्र और विनोद की दी हुई अगूठियों पर हास परिहास करते करते निज गृहस्थित उद्यान में गई थीं। आज मल्लिका के हर्ष की सीमा नहीं है। वह नरेन्द्र के साक्षात् की प्रत्याशा से उद्विग्न होरही है; और विरहिनी सुशीला ततोधिक विरहयातना भोग रही है। यह ससार की लीला है कि किसी को दुःख और किसी को सुख !!! पाठक! आपको स्मरण होगा कि जब सरला नरेन्द्रसिह के बुलाने के लिये जाती थी, तो मल्लिका ने सुशीला को सुना कर विनोद के लाने के लिये भी सरला से कहा था किंतु मल्लिका यह भली भाति जानती थी कि,-'आज नरेंद्र के साथ विनोद का भाना संभव नहीं है, क्योंकि कदाचित पाठकों को स्मरण होगा कि आज के मिलने के लिये सरला ने नरेन्द्र को जिस सांकेतिक स्थान पर बुलाया था, वहां पर उनके एकाकी ही आने की बात थी, और हुआ भी ऐसाही, क्योंकि नरेन्द्र अकेले ही सरला से मिलने गए थे, जब उन्हें मार्ग में एक मृत व्यक्ति और वीरसिंह मिले थे। यही सब सोच समझकर मल्लिका सुशीला के लिये अत्यन्त चिन्तित हुई और उसे उद्यान में से अपने प्रकोष्ठ मे लेगई और वहां जाकर वह अनेक उपायों से सुशीला का जी बहलाने लगी थी।