पृष्ठ:मल्लिकादेवी.djvu/१३५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

परिच्छेद पसराजिनी। (१३३) इतनी देर खड़ा किया, मुझे सूचना भी नही दी !! सरला! यह तेरा अन्याय कर्म है । देख महाराज अपने मन में क्या कहेंगे? वे भी साधारण व्यक्ति नहीं हैं, बङ्गदेश के प्रधान नरेश हैं।" सरला,-"मां ! ठीक है, किन्तु वे कुछ भी रुष्ट न होंगे। वे मनुष्य नहीं, कोई देवता हैं। वे आपकी माता के तुल्य भक्ति करते हैं। आज्ञा हो तो उन्हे लेआऊं।" कमला,-"हां! हां! शीघ्रता कर, विलंब क्यों करती है ?" सरला नरेन्द्र के बुलाने के लिए गई और कमला ने कुछ सोचं विचार कर मल्लिका को पुकारा,-"बेटी ! मल्लिका, यहां जलदी मा: मल्लिका!!!" भल्लिका पार्श्ववत्ती प्रकोष्ठ में बैठी बैठी सब सुनती थी, सो माता के पुकारने से तुरंत वहां गई और लज्जा से वदनावृत कर संकोच से बोली,-"क्या कहती हौ, मां!" कमला,-"बेटी! भागलपुर के महाराज पाते हैं, उनके लिये एक उत्तम आसन बिछादे।" यों कहकर कमलादेवी ने सतृष्ण नयनों से मल्लिका की ओर देखा, कि उसका रोम रोम प्रेमोद्गार से उछल रहा है ! उन्होंने कन्या की हार्दिक अवस्था का अनुभव करके अपना हदय शीतल किया। मल्लिका ने एक ऊनी आसन बिछा दिया। इसी अवसर में महाराज नरेन्द्रसिह को सङ्ग लेकर सरला आगई । उभय प्रेमियों का हदय हर्षित हुमा, चार आखें होते ही दोनों ओर लज्जा का सचार हुआ, और संकोचवश वहासे मल्लिका पलायन कर गई। यद्यपि कमलादेवी ने दो तीन बार उसे पुकारा,- "ऐं!भागीयो? बेटी, मल्लिका! मा, यहां आ, क्षति क्या है !" यद्यपि कमला ने बहुत पुकारा, किन्तु मल्लिका नही आई। बालिका के हदयगत भाव को समझ कर कमलाने चित्तमे हर्ष का अनुभव किया । यह दृश्य देखकर महाराज के हदय में आनन्दस्रोत उमड उठा, वे क्षणभर स्तभित होकर जहाके तहा खड़े रहे: अनंतर शीघ्रता से कमला के चरणों पर गिरकर बालको की नाई रोदन करने लगे। उनकी दशा देखकर कोमल हया कमला काभी हदद्य उमड़ आया, उनकी आंखों से भी बेग से अश्रु पसित होने लगा और क्षणभर किसी की भी वाक्यस्फूर्ति नहीं हुई। हठात् कमला ने अपने हाथों