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पृष्ठ:मल्लिकादेवी.djvu/२३

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परिच्छे]
(२१)
वङ्गसरोजनी।

युवक,--क्या तुम्हारा आदि निवास यहीं है?"

बाला,--" नहीं! दो वर्ष से मैं यहाँ रहतीई, पर अब अधिक दिन यहां न रहूंगी।"

कहते कहते बालिका रुक गई, उसका भाव समझ कर यषा ने हंस कर कहा,-" किन्तु सुन्दरी ! इस विषय के कहने में क्या तुमने विश्वासघात नहीं किया ?"

यह सुन बालिका घबरा कर रोने लगी, तब युवा ने अपने दुपट्टे से उसका आंसू पोंछकर कहा,-" ऐं ! यह क्या! छिः! रोती क्यों हो?"

बाला,--"महाराज! मेरा हदय चंचल होरहा है, इसलिये इसने जो अन्याय फिया, सो आपके कहने से; इसलिये इस दोष के भागी आप हैं।

कहते कहते वह रुक गई, और उसके मुख पर हंसी छा गई।

युवा ने हर्षित होकर कहा, "हमने दोष स्वीकार किया!"

इतना कहकर और उस रसला बालिका के कोमल कर को घर कर उसने अपनी अंगूठी उसकी अगुली में पहिरा दी। उसे देखकर बालिका का हदय कांपने लगा। वह उसे उतारने लगी, तो युवा ने कहा,-"यदि इसे न लोगी तो जानेंगे कि तुम हमें कभी याद न करोगी; क्योंकि इसे देखकर तुम्हें हमारा स्मरण बना रहेगा।" बालिका,-" तो आप भी मुझे स्मरण करेंगे?"

इतना कहकर बड़ी कठिनता से उसने अपनी अगूठी युवा की ओर फेंक दी । युवा ने चांदनी में अंगूठी पर खुदे हुए नाम को पढ़ आनंदित होकर कहा,-"तुम्होरा नाम मल्लिका है ?"

बाला,--यह आपने कैसे जाना?"

युवक,--"इस पर लिखा है।"

बाला,--" तो आपका नाम भी मुद्रिका पर है, महाराज! आपही नरेन्द्र--"

युवक,--" नहीं, हमें यह राजा से मिली है।"

बाला,--" तो यह भी मुझे रानी से मिली है।"

युवा ने हंसकर बालिका को कंठ से लगाया। वह लजा से संकुचित होकर हट गई। इतनेही में पूर्वपरिचिता सुन्दरी युवती वहां आगई । उसे देखकर दोनो लज्जित हुए।