पृष्ठ:मल्लिकादेवी.djvu/४२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
(४०)
[सातवां
मल्लिकादेवी।

सूर्योत्ताप के मारे सभी व्याकुल थे, किन्तु उपायान्तर न देखकर शीघता से चले जाते थे।

वे सब दो कोस गए होंगे कि इसी अघसर में पठानों की सेना ने उनकी गति रोकी। एकाएक ऐसे स्थल में शत्रुसेना को सामने देख सब घबरा गए, पर बहुदी मंत्री ने सभों को उत्साहित करके साहस प्रदान किया, और शत्र की सेना के अभिप्राय के जानने के लिये खड्गसिंह को भेजा। ऐसे अवसर में सहसा'कोई व्यक्ति शत्रसेनामें प्रवेश नहीं कर सकता, पर असीम बलशाली खड्गसिंह ने यथार्थ खड्गसिंह का रूप धारण करके शत्रसेना में गमन किया। क्षणभर के अनंतर खड्गसिंह के संग एक यवन, मंत्री के सन्मुख आया। पाठक! यह वही यवन है, जो आज ही प्रातःकाल प्राणभय से महाराज के सामने से भागा था। सो वह महाराज को धरने के अभिप्राय से सेना देकर आता था, सोई मत्री से मार्ग में भेंट हुई!

उसे आदर से बैठाकर मंत्री ने कहा,-"आपका नाम क्याहै ? और क्यों इस प्रकार आप हमलोनों को रोकते हैं ? "

यवन,-"हमारा नाम अमीरअली है; कल हम्हीं लोग महाराज को सोते हुए उठा लेगए थे।

मंत्री ने इतनेही सूत्र से सब घटना मिलाकर कहा, "यह तुम्हारा महा कुकर्म है,अस्तु उन्हें तुम क्यों लेगए थे,और अब वे कहाँ हैं?

इसका जवाब न देकर पहिले उसने मत्री से वेही बातें कही,जो महाराज से कही गई थीं। और उन बातों के न मानने पर भय दिखाया और उसने झूठमूठ यह भी कहा कि,-"अभी महाराज कैद हैं।"

उसकी बातों,और धृष्टता से मंत्री अग्निशर्मा होगए ! वे गरज कर बोले,-"सत्यानाशी ! नरराक्षस! अब तेरी दुष्टता समझे! बता, महाराज कहां हैं ?"

इस पर उसके मुख से,-"जहन्नुम में" यह शब्द सुनतेही मत्री क्रोध को रोक न सके और उन्होंने उछलकर ऐसा खड्ग मारा कि अमीरअली ने तुरन्त दोज़ख़ का रास्ता लिया। उसके मारे जातेही, "अहमक, काफ़िर,हिंदू होशियार!"यों कहकर यवनलेनाटिड्डीदल की तरह आ टूटी, किंतु वीरवर हिंदुओं ने क्षणभर में बहीं सबका संहार करके अपना मार्ग लिया, और राजभवन में पहुंचतेही मंत्री ने महाराज के अनुसंधान के लिये दूतों को इधर उधर प्रेरण किया।