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पृष्ठ:मल्लिकादेवी.djvu/५१

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परिच्छेद]
( ४९ )
वङ्गसरोजनी।

विचारपूर्वक पढ़ा और सहर्ष कहा,-

"अत्युत्तम!वह पाजी इसीके योग्य है, शठे शाठ्यं समाचरेत्' ।"

अनतर वृद्ध मत्री से परामर्श स्थिर करके बिनोद को सङ्ग लेकर नरेन्द्र ने प्रातःकाल यात्रा की थी। इसी यात्रा में मृग का पीछा, महाराज का अतर्धान होना, यवनो का बध, सरला और मल्लिका का साक्षात् आदि हुगा था। पाठक अब आनुपूर्विक सब घटनाओं को समझ गए होगे।

यहा पर हम उस पत्र के आशयमात्र की पाठकों पर प्रगट करके इस परिच्छेद को समाप्त करेंगे।

तुगरल के उस नीचनापूर्ण पत्र के उत्तर में, जो कि महाराज नरेन्द्रसिंह की ओर से दिया गया था, और जिसका इगित अभी ऊपर किया जा चुका है, जो कुछ लिखा था, उसका आशय केवल यही धा कि,-"श्रीमान् की प्रत्येक आज्ञा पर मैं भली भाति विचार कर रहा हूं, आशा है कि दोही एक सप्ताह के अभ्यन्तर मैं स्वय श्रीमान की सेवा मे उपस्थित होकर श्रीमान को सन्तोष जनक उत्तर से प्रसन्न करने में कदाचित अपने को समर्थ पाऊगा" इत्यादि, इत्यादि।