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[नवां
मल्लिकादेवी।

नवां परिच्छेद

पूर्व घटना।

विधिर्बलोयान् बलिनाम् ।

               (विष्णुपुराण)

स उपन्यास में सन् १२७६ ई० की उम भयङ्कर घटना वडर का उल्लेख किया गया है, जिम समय बङ्गदेश मे भयङ्कर विप्लव उपस्थित हुमा था। उस समय दिल्ली के तब पर सदाशय बादशाह गयासुद्दीन बलवन था, और बड़ाल के नव्वाब की गही महा दुराचारी .नव्वाच तुगग्लखां के हाथ में थी, जिसका दूसरा नाम मगहीन था।

उस समय भागलपुर, में जिसका सस्कृतग्रंथों में भार्गवपुर नाम लिखा है, एक प्रबल राजवश राज्य करता था। वहांके उस समय के वर्तमान महाराज नरेन्द्रसिह, का नाम और कुछ परिचय हम पूर्व परिच्छेदों में दे आए हैं। यहां पर उनके विषय में कुछ विशेष विवरण के लिखने की हमारी इच्छा है।

उस समय भागलपुर नगर एक पक्की और दृढ़ शहरपनाह के अन्दर बसता था। वहांके महाराज का सुदढ़ किला गङ्गा किनारे बना हुआ था और उस नगर के महाराज महेन्द्रसिह, जिनकी अवस्था उस समय केवल पचास वर्ष की थी, राज्य करते थे।

उसी सन्, अर्थात् १२७६ ई० मे एक दिन प्रातःकाल उठकर नरेन्द्रसिंह ने अपने पलङ्ग पर एक पत्र पाया,जोकि उनके पिता के हाथ का लिखा हुआ प्रतीत होता था। उस पत्र में प्रौढ़ महाराज ने अपने युवराज (पुत्र) नरेन्द्र को केवल इतना ही लिखा था कि,-"एकाएक चित्त में वैराग्य के माजाने से हम अपनी स्त्री (तुम्हारी माता) के सहित वानप्रस्थ आश्रम का अवलपन करके धन को जाते हैं । अतएव तुम शुभ मुहूर्त में राजसिंहासन पर बैठ कर धर्म और नोति के साथ प्रजा का पालन करना ।"

एकाएक पिता के अन्तर्धान होने और इस भाशय के पत्र के पाने से नरेन्द्रसिंह अत्यन्त मर्माहत हुए और उन्होंने अपने पिता