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पृष्ठ:मल्लिकादेवी.djvu/५५

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परिच्छेद]
(५३)
वङ्गसरोजनी।

दसवां परिच्छेद

बङ्गाल पर चढ़ाई।

"प्रवर्तता प्रकृतिहिताय पार्थिवः।"

(भारविः)
 

मरूप के घोर युद्ध मे तुगनखां परास्त होकर बदी हुआ। का वह बङ्गाले का दुत और अत्याचारी नव्वाब था, पर उस पाप का फल उसे शाघ मिला। वह उसी कैद में सन् १२५८ ई० मे मारा गया। इसके कुछ काल के उपरान्त अमानखा गौड़ का सूबेदार हुभा । उसके नायब का नाम तुगरलखा था। यद्यपि अमीन की इस पर विशेष कृपादृष्टि रहती थी, पर लोभ पाप का मूल है; सो, लोभ के पशवी होकर विश्वासघातक तुगरल ने अमीन के बधा करने का सङ्कल्प किया। इसने दिल्ली के प्रसिद्ध बादशाह गयासुद्दीन बलवन को असाध्य रुजार्दित सुनकर अपना अमूल्य अवसर नह नहीं किया और प्रजोरञ्जक अमीनखां का रात्रि के समय सोने हुए अपने हाथ से बध किया। लोग कहते हैं कि प्रथम वह ऐसा अमीनखां के विरुद्ध हुआ कि उसे कारागार में डालकर और अपना नाम मगसुद्दीन रखकर सन् १२७६ ई० में बङ्गाले कास्वाधीन नवाब हुआ गौर अपने को स्वतत्र बादशाह मानने लगा। जो हो, पर उसने जो अमीन की जान छोड़ी होगी, यह निश्चय नहीं होता।

इसने बङ्गाले मे ऐसा अत्याचार मचाया कि सच्च प्रजा" त्राहि त्राहि" करने और अधिकांश प्रजा देश छोड कर भागने लगी। बङ्गाले के राजाओ ने इसे स्वय दमन करने की क्षमता न रख, इसके विरुद्ध दिल्लीश्वर को उत्तेजित किया था।

दिल्ली के बादशाह ने उसे जीतने को क्रमश: दोबार सेना भेजी थी, किन्तु विश्वासघात करके दोनों बार तुगरलखाजीत गया था। वह शृगाल होकर भी शेर के ऐसे पराजय पर महा अहंकृत हुआ। दिन दिन नए नए अत्याचार होने लगे। सतीजनों कासहीत्व, धनिको का धन, मानियों को मान, मानो इसकी नानी को मीरास थी।