मंत्री विनोदसिह के साथ गत बिनानी चाही थो, किन्तु वहासे नव्वाब के अनुचर जिस जगह उन्हें उठा ले गए थे, वह स्थान उस पर्वत और भागलपुर के बीच में था और वहांसे आठ कोस दूर पूर्व की ओर झाड़ी से घिरा हुआ वह टोला था, जिसमें महाराज सरला और मल्लिका के अतिथि हुए थे। और वह स्थान भी भागलपुर और उस पर्वत का मध्यवर्ती ही था, जहां पर यवनसेना से मत्री विनोदसिंह को मुठभेड़ हुई थी।
पाठक, यहांतक कुछ आनुपूर्विक घटना का वर्णन करके अब हम पुनः प्रकृत विषय के वर्णन करने में प्रवृत्त हाते हैं, परन्तु एक बात का और कह देना अत्यन्त उचित समझते हैं । वह यह है कि जिस समय महाराज नरेन्द्रसिंह मंत्री विनोदसिंह के साथ उठकर वृद्ध मंत्री महाशय से मिलने के लिये उस कमरे के बाहर होगए थे, उसके कुछ ही क्षण उपरान्त उस महल की दीवार में एक चोरदर्वाजा प्रगट हुआ और उसके अन्दर से एक व्यक्ति निकल और महाराज के पलङ्ग के ऊपर कोई वस्तु को रख, पुनः उस चोरदर्वाज़ के भीतर जाकर द्वारसहित अन्तर्धान होगया! किन्तु पाठक, यह बही व्यक्ति था, जिसने अभी कुछ घंटे पूर्व बादशाही पत्र को नरेंद्रसिंह के हाथ मे लाकर दिया था।