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पृष्ठ:मल्लिकादेवी.djvu/६४

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(६४)
[बारहवां
मल्लिकादेवी।

लिये भी एक नया जोड़ा लाऊंगी !"

मल्लिका,-"छिः ! मरजा तू !!!"

सुशीला,-"वाह री सरला, बलिहारी! तू धन्य है !"

सरला,-"क्यों क्यों, क्या हुआ?"

सुशीला,-"बस.यस! भर पाया।तुझसे भरझ कर कौन जीतेगा?"

थोडी देर तक सब हमती, और एक दूसरी के अङ्गों में लपटती रहीं। वह मनोहर दृश्य जिन्होंने नहीं देखा है, उन्हें लेखनी द्वारा समझाने की चेष्टा करना विडम्बनामात्र है। अनंतर सरला ने धीरे से कुछ मल्लिका के कान में कहा, और वहासे वह चलो । यद्यपि सुशीला ने उसे पुकारा; पर, "आती हूं;"कह कर सरला चली गई।

उसका ऐसा व्यवहार देखकर सुशीला कुछ मन में क्षुभित हुई, यह जान कर मल्लिका ने कहा, "सुशीला! चल, उद्यान में चलें।"

सुशीला,-"चलो, पर मालाग्रंथन करोगो न?"

मल्लिका,-"क्यों, री! अब तू इतनी बढ़गई ? ऐं! ऐसा जी घबराता था तो सरला के संग ही क्यों न चली गई ?"

सुशीला लज्जित होकर कुछ न बोली, गौर मल्लिका उसका हाथ पकह कर उद्यान की ओर चली। जिस घर में मल्लिका रहती थी. उसी में एक छोटासा उद्यान और पुष्करिणी थी। चारी ओर से प्राचीरवेष्ठित उद्यान में दोनों गईं। पाठक! मल्लिका तो मंदिर में थी,यहां कैसे आई ? और यह सुशीला कौन है ? तथा वह प्रौढ़ा का क्या वृत्तान्त है ? अच्छा अभी धैर्य रस्त्रिए। समय पाकर सब भापही आप प्रगट होजायगा।

किन्तु यहां पर इतना हम अवश्य लिख देना उचित समझते हैं कि जब उस मदिर में सरला और मल्लिका अत्याचारी यवनों के हाथ पड़ी थी, और वे दोनोउन्हीं दुराचारी यवनों की कैद में पडी हुई थी, तो उन्हें किसी बिचित्र शक्ति, या किसी व्यक्ति ने उस कैद से छुड़ाया था। उसी समय सुशीला भी, जो मल्लिका की नाते में बहिन थी, गौर दुर्भाग्य से यवनों के हाथ लग, उनकी कैद में पड़ी हुई थी, एक व्यक्ति द्वारा छुडाई गई थी। ये व्यक्ति संचमुच नरेन्द्र और बिनोद ही थे, परन्तु इन्होने किसकी सहायता से और कब, तथा कहांसे उन बालाओं का क्योंकर उद्धार किया था, यह बात हम आगे चलकर प्रगट करेंगे।