पृष्ठ:मल्लिकादेवी.djvu/७१

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परिच्छेद]
(६६)
वङ्गसरोजनी।

जाना और वहां पहुंचकर महाराज के अन्वेषण के लिये दूतोंको भेजना।

इधर महाराज का रात ही कोयवनों के हाथ पडना,जागकर अपनो की बदी की अवस्था में देखना, एक अपरिचित से शस्त्रों का पाना; तदनतर उसी गृह में मुहम्मद कालिम से बातचीत होने पर महाराज फा कई यवनों को बध करना और वहासे चल तथा आमबारी में पहुंच, उसी अपरिचित से अपने घोड़े तथा अस्त्र शस्त्र को पाना और एक मोर को प्रस्थान करना; इसके अनंतर उनका मल्लिका का अतिथी होना और फिर उससे बिदाहो,एकाकी बादशाह से मिलने के लिये 'मोतीमहल' नामक पहाड़ी की ओर जाना, तथा उनके जाने पर झाड़ी मे से निकलकर एक यवन सवार का उनका पीछा करना और उसके अन तर एक हिंदू का उसी झाडी से निकल कर एक ओर को प्रस्थान करना, इत्यादि कथा प्रारम्भ से अबतक वर्णन की गई है।

इस प्रकार अपने उपन्यास का सिलसिला ठीक करके अब हम अपने कथानक को वहांसे प्रारम्भ करते हैं,जब महाराज नरेन्द्रसिह मल्लिका से विदा हो, 'मोतीमहल' नामक किले की ओर प्रस्थित हीचुके थे।

यहांपर एक बात हम और लिख कर तप अपने उपाख्यान की ओर मुड़ेंगे।वह यह है कि जब उस कोठरी में,जिसमें कि महाराज कैद किए गए थे, उन्होंने मुहम्मद कासिम आदि पठानों को मार डाला था, उस समय एक यवन, जिसका नाम अमीराली था, वहां से भागा था और नव्वाब की कुछ सेना को साथ लेकर इस अभिप्राय से उसने शोधता के साथ जाकर उस मुहाने को रोक लिया था, जिधर से उसने महाराज की सेना के लौटने का अनुमान किया था। उसने यही सोचा था कि,-'नरेन्द्रसिंह यहांसे निकल कर जरूर अपनी फौज में जा मिला होगा!' निदान! महाराज नरेन्द्रसिंह तो अपनी सेना मे नहीं पहुंचने पाएथे,पर मत्री विनोदसिंह का सामना यवनसेना से होगया और फिर तो हिंदूवीरों ने बड़े उमग से सारे यवनों का सहार कर डाला। वहांसे राजभवन में आकर मत्री ने महाराज के अनुसधान के लिये दूतों को प्रेरण किया था।

उधर एक आनन्द और हुआ, और वह, यह कि अमीरअली जिस नव्यायी सेना का नायक था, उसी सेना मे उसमान नाम का एक और पदाधिकारी था,सोयह रंग बदरंग देख बहांसे भागा और