पृष्ठ:मल्लिकादेवी.djvu/७७

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परिच्छेद]
(७५)
वङ्गसरोजिनी।

के घोडे की लगाम पकड लो और उसे टहलाते टहलाते कहा,- "क्या आपका मैं एक अदना सेवक नहीं हूं?"

फिर महाराज ने उस आगतुक के दिए हुए मेवे कोखा और झरने का जल पीकर विश्राम किया, इतनी देर में उस आगतुक ने महाराज के घोडे को मल दल तथा चराकर ताजा कर दिया था।

इस अवसर में भी उनदोनो की बहुतसी बातें हुईं, जिनके मिस से उसने मत्री का नव्याबी सेना के परास्त करने का हाल तथा महाराज के 'अन्वेषण के लिये दूतो के इधर उधर दौडाने को वृत्तान्त कह सुनाया। और यह भी उसने कहा कि, "श्रीमान् ने मल्लिका देवी के यहां पहुंचकर अपने अश्व को योही छोड़ दिया था,यह अच्छा नहीं किया था, क्योंकि एक यवन वहा पर आपके घोड़े को देखकर आपका पतातथा आपही के साथ मल्लिका और सरला के गुप्त निवासस्थान का पता भी पा गया, यह अच्छा न हुआ।"

आगतुक की बातें सुनकर महाराज नरेन्द्रसिंह ने अपनी भूल स्वीकार की और चकपकाकर कहा,-"माश्चर्य युवक ! तुम क्या मल्लिका का परिचय जानते हो?"

आगंतुक,-"जी हां, मैं उनका सारा परिचय जानता हूं।"

महाराज,-"वह किसकी कन्या है ?"

शागंतुक,-"क्षमा करिए, श्रीमान् ! मल्लिका का परिचय मैं मापको नही देसकता। सभव है कि वह स्वयं या उसकी सखी सरला आपको उपयुक्त समय पाकर सारा परिचय देगी।"

महाराज,-"तम आश्चर्यच व्यक्ति हो!!!"

आगतक,-(मुस्कुराकर ) "जी हा, श्रीमान् !"

इसके अनन्तर एक घंटे विश्राम करके महाराज बादशाह के शिविर की ओर चले और वह विचित्र युवक अपने अभिलषित लक्ष्य की ओर चला गया। पाठक, यह वही युवक है जो उस झाड़ी में से उसमान के निकलने के बाद निकल कर महाराज के पीछे लगा था। किन्तु बडे आश्चर्य का विषय है कि उस यवन ने तो महाराज नरेन्द्रसिंह कोन पाया,किन्तु इस अद्भुत युधकने अवश्य उन्हें पा लिया।