पृष्ठ:मल्लिकादेवी.djvu/९१

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परिच्छेद]
(८९)
वङ्गसरोजिनी।

उचित दण्ड दूं, और अबला की सहायता करके लौट आऊ!"

महाराज ने शीघता से कहा,--" किन्तु ठहरो, कदाचित यह स्थान वही है, जहां पर हमको ठहरने के लिये हमारे एक अपरिचित सहायक ने हमें सकेत किया है।"

यों कहकर महाराज नरेन्द्रसिंह पालकी में से उतर पडे। उनके उतरते ही एक अत्युच्च वृक्ष पर से एक व्यक्ति कूद पड़ा, जिसे देखते ही महाराज कुछ घबराए, पर उसने तुरन्त अपना प्रकृत परिचय देकर उनके उद्वेग को दूर कर दिया और कहा,-"श्रीमान् समय पर और ठीक स्थान पर पहुंच गए हैं।"

पाठक ! भागलपुर के महाराज नरेन्द्रसिंह को तो पहचान ही गए होगे, किन्तु इस व्यक्ति से अभी तक अनजान होगे, जो अभी एक वृक्ष पर से उनके सामने कूदा था। इसके विषय मे अभी हम केवल इतना ही कहना यथेष्ट समझते हैं कि यह वही अपरिचित व्यक्ति था, जो अबतक लगातार कई बार हमारे नायक महाराज नरेन्द्रसिंह की सहायता कर चुका था।

उस अपरिचित ने कहा,--" श्रीमान् ! मैं अभी यह कह चुका हूं कि आप मेरे सकेतानुमार ठीक समय और ठीक स्थान पर पहुंच गए हैं।"

इतने ही में उस सन्नाटे को बेध करती हुई फिर किसी अबला के रोदन की करुणध्वनि सुनाई दी, जिस पर महाराज का ध्यान्त आकर्षित करके उसी अपरिचित ने कहा,-"श्रीमान् ! आप सुनते हैं! यहांसे उत्तर ओर थोड़ी दूर पर नवाब के दोसी सैनिकों के मध्य में आपकी मल्लिका अवरुद्ध है। बस जाइए और उसका उद्धार करिए; किन्तु सावधान ! यह अवसर वीरता दिखलाने का है,औरक्षमा कीजिएगा, मैं इस समय आपके साथ नहीं रहसकता।"

यो कहकर वह अपरिचित व्यक्ति चला गया और महाराज उस ओर,जिधर से रोदनध्वनि ठहर ठहर कर सुनाई देती थी,चल पड़े।

उस समय खड्गसिंह ने बहुत भापत्ति की और अत में कहा,- "महाराज ! आप व्यर्थ सेवकों के रहते, अग्रसर होते है! आप यही रह कर देखिए कि हमलोग उन दुष्टों को अभी पगस्त करते है।"

किन्तु खङ्गसिंह की बात को महाराज ने नहीं माना । अगत्या सभोने महाराज का अनुसरण किया। महाराज एक हलकी तलवार