पृष्ठ:महात्मा शेख़सादी.djvu/२१

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इतना हिन्दुस्तान में, इतनी भूमि अमुक स्थान पर है, इतने मकान अमुक स्थान पर, कभी कहता मुझे मिश्र जाने का शौक़ है लेकिन वहां की जलवायु हानिकारक है। जनाब शेख़ साहेब, मेरा विचार एक और यात्रा करने का है, अगर वह पूरी हो जाय तो फिर एकान्तवास करने लगूं। मैंने पूछा कि वह कौनसी यात्रा है? तो आप बोले कि पारस का गन्धक चीन देश में लेजाना चाहता हूं, क्योंकि सुना है कि वहां इसके अच्छे दाम खड़े होते हैं, और चीन के प्याले रूम लेजाना चाहता हूं। वहां से रूम का '[१]*देबा' लेकर हिन्दुस्तान में, और हिन्दुस्तान की फौलाद 'हलब' में और हलब का आईना 'यमन' में, और यमन की चादरें लेकर पारस लौट जाऊंगा। फिर चुपके से एक दूकान कर लूंगा और सफ़र छोड़ दूंगा आगे ईश्वर मालिक है। उसकी यह तृष्णा देख कर मैं उकता गया और बोला:—

"आपने सुना होगा कि 'ग़ोर' का एक बहुत बड़ा सौदागर जब घोड़े से गिर कर मरने लगा तो उसने एक ठंडी सांस लेकर कहा कि तृष्णावान् मनुष्य की इन दो आंखों को या तो सन्तोष भर सक्ता है या क़ब्र की मिट्टी।"


  1. * एक प्रकार का बहुमूल्य कपड़ा।